Sunday 7 May 2017

तुम कभी नहीं मिलोगे मुझे

तुम कभी नहीं मिलोगे मुझे
अब ये जान चुकी हूँ मैं
अपने दिल से हर इक ख्वाब
मिटाना होगा मुझे
अब ये मान चुकी हूँ मैं

मेरी उम्मीदों से भरा हौसला भी
अब टूट चूका है
मेरा अटल अमर विश्वास भी
ज़र्रा – ज़र्रा होकर बिखर चुका है
ज़िन्दगी की हर जंग
हार चुकी हूँ मैं
हाँ ! अब हार चुकी हूँ मैं ...


सालिहा मंसूरी 

28.01.16
04.17 pm

0 comments:

Post a Comment