हर -सुबह तुम्हारी यादों की
बारात लेकर आती है
और मैं तुम्हारी यादों की
बारात के स्वागत के लिये
सूरज की इक -इक किरण को
अपनी मुट्ठी में समेटती
बारात लेकर आती है
और मैं तुम्हारी यादों की
बारात के स्वागत के लिये
सूरज की इक -इक किरण को
अपनी मुट्ठी में समेटती
बड़ी उत्सुकता से
उस नीले आसमान की तरफ
इक टक तकती
तुम्हारे आने का
इन्तजार करती रहती
लेकिन न तुम आते
और न तुम्हारी कोई खबर
और फिर अचानक
धीरे -धीरे वो किरणें
मेरी मुट्ठी से
बिखरने लगतीं .....
सालिहा मंसूरी
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